ब्यूरो रिपोर्ट झाबुआ
रंग-रूप और धन-यौवन का अभिमान ना करते हुए राग द्वेष को कम करने का प्रयास करना चाहिए!
जैन धर्म का सबसे बड़ा लोकोत्तर पर्व है पर्यूषण महापर्व - साध्वी श्री मधुबाला जी!
पेटलावद। पर्युषण काल में हमें आवेश मुक्त, अहंकार मुक्त, माया कपट से मुक्त, और लोभ से मुक्त रहने का प्रयास करना चाहिए।
पर्युषण काल के 8 दिनों में आत्मा को देखने का प्रयास करें, शरीर के रंग -रूप, यौवन और धन का अभिमान न करते हुए राग- द्वेष की भावना को कम करने का प्रयास करें और यथासंभव पाप कारी प्रवृत्ति को छोड़ने का प्रयास करना चाहिए।
उक्त आशय के उद्गार श्री जैन श्वेतांबर तेरापंथ धर्मसंघ के 11वें अनुशास्ता युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमणजी की विदुषी सुशिष्या शासनश्री साध्वी श्री मधुबालाजी ने पर्युषण पर्व के प्रथम दिन उपस्थित श्रावक श्राविकाओं के समक्ष तेरापंथ भवन में व्यक्त किए।
स्वाद का संयम!
आपने कहा कि हर धर्म में लौकिक और लोकोत्तर दोनों पर्व मनाए जाते हैं, जैन धर्म के सारे पर्व लोकोत्तर पर्व होते हैं। लोकोत्तर पर्व में सबसे बड़ा पर्व पर्युषण महापर्व।
आपने आचार्यप्रवर द्वारा निर्धारित पर्यूषण पर्व के प्रथम दिन खाद्य संयम दिवस के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भोजन का विचारों पर गहरा प्रभाव पड़ता है ! हमें हित, मित और ऋतभुक भोजन करना चाहिए अर्थात हमारा भोजन हितकारी हो, संयमित हो ,और ऋतु के अनुकूल हो।
जयाचार्य प्रखर बुद्धिमान व प्रज्ञासम्पन्न आचार्य थे!
साध्वीश्री मधुबालाजी ने तेरापंथ धर्म संघ के चौथे आचार्य श्री श्रीमज्जयाचार्य के 141वें निर्वाण दिवस के अवसर पर उनकी स्मृति करते हुए कहा कि वे प्रखर बुद्धिमान और प्रज्ञा संपन्न आचार्य थे। बचपन से ही प्रतिभा संपन्न थे, उन्होंने 11 वर्ष की अवस्था में संत नाममाला नामक ग्रंथ की रचना कर अपनी विशिष्ट प्रतिभा का परिचय दिया और तेरापंथ धर्मसंघ को सजाने-संवारने के विशिष्ट कार्य किया। पुस्तक- पन्नों और साधु-संतों आदि का संघीकरण कर एक अद्भुत कार्य किया और आचार्य भिक्षु द्वारा निर्मित मर्यादाओं को पुष्ट किया।
बच्चों पर भोजन का प्रभाव!
साध्वी श्री विज्ञानश्रीजी ने कहा कि खाद्य संयम दिवस प्रेरणा देता है कि हम वर्ष भर खाने का संयम करें, अनावश्यक वस्तुएं ना खाएं। जिन चीजों के खाने से स्वास्थ्य बिगड़े उनका संयम करें। प्रतिदिन द्रव्यों की सीमा करें और छोटे-छोटे बच्चों को प्रारंभ से ही खाद्य संयम का अभ्यास करवाएं।
मेरी प्रज्ञा जागृत कैसे हो!
आज के कार्यक्रम में साध्वी श्री मंजुलयशाजी ने कहा कि मेरी प्रज्ञा जागृत कैसे हो विषय को संबोधित करते हुए कहा कि सात पीढ़ियों की चिंता करने वाला, पोते-पड़पोते के लिए धन इकट्ठा करने वाला व्यक्ति कर्म फल भोगते समय अकेला होता है। परिवार संपत्ति के बंटवारे में साथ देता है लेकिन कर्म फल के बंटवारे में साथ नहीं देता, क्योंकि कर्मों के उदय के फलस्वरूप मिलने वाली वेदना व्यक्ति स्वयं को भोगना पड़ती है। व्यापार में धोखाधड़ी व अन्याय से धन का अर्जन नहीं करना चाहिए। इसका सटीक उदाहरण पिछले कोरोनावायरस की बीमारी के समय संसार के स्वार्थी स्वरूप को देखकर लगाया जा सकता है।
सामूहिक तेले का प्रारंभ!
साध्वी मंजुलयशा जी ने आज से प्रारम्भ होने वाले सामूहिक तेले के संदर्भ में तप का महत्व बताते हुए कहा कि आगम में तपस्या का सम्यक उद्देश्य बताया गया है कि इस लोक और परलोक में भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति, कीर्ति और प्रशंसा के लिए तप न करते हुए केवल कर्म निर्जरा या आत्म शुद्धि के लिए तपस्या करना चाहिए। पुण्य-पाप व्यक्ति के स्वयं अपने अपने होते हैं। शाश्वत या सच्चा सुख सिर्फ धर्म की शरण में आने से ही मिलता है ।
धन और यौवन स्थिर नहीं!
साध्वी श्री ने गीत के माध्यम से संसार की अनित्यता और असारता का वर्णन किया। धन और यौवन स्थिर नहीं रहते, व्यक्ति को इनका अहंकार नहीं करना चाहिए, आज के कार्यक्रम में मंगलाचरण कन्या मण्डल की बहिनों ने किया।
सैकड़ो उपवास प्रत्याख्यान!
पर्यूषण पर्व के प्रथम दिन सैकड़ों श्रावक-श्राविकाओं ने सामूहिक रूप से उपवास का प्रत्याख्यान किया। आज के कार्यक्रम में स्थानीय श्रावक- श्राविकाओं के अतिरिक्त आसपास के चोखले से भी बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाएँ प्रवचन सुनने के लिए उपस्थित रहें।
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