Jelajahi

न्यूज़ टैग्स
Best Viral Premium Blogger Templates

इंद्रियों के विषयो में तल्लीन जीव का आत्म लक्ष्य कायम नही रहता है!
श्याम त्रिवेदी की रिपोर्ट

 

 
श्याम त्रिवेदी की  रिपोर्ट

इंद्रियों के विषयो में तल्लीन जीव का आत्म लक्ष्य कायम नही रहता है - प्रवर्तक जिनेन्द्र मुनिजी!

झाबुआ । पांच इन्द्रियो के विषयों में आसक्त होकर जीव आत्म लक्ष्य को भुल जाता हे । इन इन्द्रियों के विषयों में तल्लीन जीव का आत्म लक्ष्य कायम नही रहता है ।

उक्त प्रेरक  विचार स्थानक भवन में महती धर्मसभा में पूज्य जिनेन्द्र मुनिजी मसा. ने व्यक्त किये । 

विषयों की आसक्ति के कारण जीव साधु-संतो की व्याख्यान वाणी, आराधना का लाभ नही ले पाता है । जीव को धर्म पर श्रद्धा होना बहुत ही  मुश्किल है । 

आपने कहा कि आज तीर्थंकर  भगवान महावीर स्वामी का शासन विद्यमान है, साधु-साध्वी, श्रावक_ श्राविका धर्म आराधना कर रहे है ।

जो श्रद्धापूर्वक आराधना कर रहे है  वे धन्य है । ऐसे पांचवें आरे में धर्म की प्राप्ति मुश्किल है, श्रद्धा आना मुश्किल हे । हमे ऐसा धर्म बडी मुश्किल से मिला है । आज व्यक्ति श्रद्धा से,धर्म से कैसे विचलित हो जाता है। 

मैं विराधना से विरक्त होकर आराधना में सम्यकत्व प्रवृर्ति करु। सम्यकत्व के स्वरूप को समझ कर सम्यकत्व को ग्रहण करूं, ऐसे विचार व्यक्ति में आना चाहिये। देव-गुरू-धर्म का स्वरूप  समझने पर  व्यक्ति में सम्यकत्व की प्राप्ति होगी ।

देव अरिहंत सिद्ध मेरे भगवान है, गुरू जो भगवान की आज्ञा अनुसार पालन करते है, केवली भगवान द्वारा धर्म का पालन करू , ऐसा संकल्प लेने पर सम्यकत्व  जागृत होता है । नौ तत्वों पर श्रद्धा करना सम्यकत्व है।

आपने आगे कहा कि जो भगवान ने बताया वह सुनना, मानना, श्रद्धा करना सम्यक दर्शन है । बिना सम्यकत्व आए मोक्ष नही बनाता । तथा निर्वाण भी नही होता है । मै। अबोधी ( विषय लीनता ) को त्यागता  हूं, छोडता हूूं, तथा बोधि (विरक्ति ) को स्वीकार करता हूं ।

जीव में अनादिकाल से आसक्ति विषयों के प्रति रही है ।  जितनी ज्यादा आसक्ति, ममत्व, तल्लीनता, विषयों में रहेगी, उतना व्यक्ति धर्म का पालन नही कर सकता है । पांच इन्द्रियों में लालीबाई (रसनेन्द्रिय) को छोड़ना  बहुत मुश्किल है । 

आज कई तपस्वी 25,24, 21,15,7 उपवास तथा अन्य प्रकार की तपस्या कर रहे है, ऐसे तपस्वी धन्यवाद के पात्र है ।  विषयों की विरक्ति को स्वीकार कर उसमें तल्लीन होना होगा, तभी विषयों की आसक्ति  छूटेगी । तभी जीव की आराधना और श्रद्धा निर्मल बनेगी।

जहां  माया, छल,कपट नहीं हो,वह मार्ग श्रेष्ठ है!
अणुवत्स पूज्य संयतमुनि जी मसा. ने कहा कि भगवान महावीर स्वामी की आत्मा इस भव से पहले हमारे जैसी ही थी, वे भी  संसार में परिभ्रमण करते थे, हम भी संसार में परिभ्रमण कर रहे है । भगवान ने जाना कि संसार असार है, संसार को छोडना है, अन्तिम भव  में निर्वाण को प्राप्त हुए।

हमें भी यह जानना है कि संसार असार है । संसार का पुरूषार्थ करते करते जीव भ्रमण कर रहा है, परन्तु मोक्ष के लिये पुरूषार्थ ,  करना  आवश्यक है, यह नही समझ रहा है । ज्ञानी की बात सुनना, उसे आचरण में लाना आवश्यक है ।

संसारी मनुष्य में कपट की भावना होती है, वह ठगता रहता है, माया करता है, धोखा देता है,ऐसे मनुष्य के साथ हम मिल जुल कर रह रहे है । हमे ऐसे  व्यक्ति से सावधान रहना जरूरी है । आज धर्म-तपस्या से रोकने वाले भी ठगने वाले होते है । व्यापारी ग्राहक को ठग रहा है,ग्राहक ठगा जा रहा है । 

आज कल  तो थोडे से लाभ के लिये जीव देवी-देवता को भी ठगता है । गुरू को भी लोग ठग रहे है । संसार में उपर से दिखता कुछ है, अंदर से कुछ और है ।  मुंह पर राम, बगल में छूरी वाली कहावत चरितार्थ हो रही है । 

ऐसे संसार को देखकर भी जीव को संसार छोड़ने का मन नही होता है। जहां छल-कपट,माया नही हो वह जगह, वह मार्ग श्रेष्ठ है । भगवान की वाणी सुनकर उस पर श्रद्धा रख कर और उसे  आचरण मे लाना चाहिये । जीव अंध श्रद्धा लेकर बैठा हुआ है , उसकी इच्छा पुरी नही होने पर वह अनेक प्रकार के उपाय कर जीवन बर्बाद करता है ।
धर्मसभा में आज संजेली, रावटी एवं अन्य स्थानो से दर्शनार्थ श्रद्धालु पधारे ।         

युद्ध भूमि में योद्धा तपे , सूर्य तपे आकाश। तपस्वी साधक अंदर से तपे ,करे कर्मो का नाश 
आज श्री राजपाल मुणत के 24 उपवास की तपस्या पूर्ण हुई । श्रीमती राजकुमारी कटारिया, श्रीमती सोनल कटकानी ने 25  उपवास, श्रीमती रश्मि मेहता ने 23 उपवास, श्रीमती आरती कटारिया, श्रीमती रश्मि निधि, निधिता रूनवाल, श्रीमती चीना और नेहा घोडावत ने 22 उपवास, श्री अक्षयगांधी ने 21 उपवास कुमारी खुशी चौधरी ने 15उपवास,  श्रीमती आजाद बहन श्रीमाल, श्रीमती सोना कटकानी ने 7उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किये । 

संघ मे 10 तपस्वी उपवास, एकासन, निवि तप द्वारा वर्षी तप की आराधना कर रहे है । श्रीमती पूर्णिमा सुराणा, सिद्धितप, श्रीमती उषा, सविता, पद्मा, सुमन रूनवाल, द्वारा मेरु तप किया जा रहा है । इसके अलावा चोला-चोला, तेला-तेला, बेला-बेला तप भी चल रहा है । तेला और आयंम्बिल तप की लडी सतत चल रही है । व्याख्यान का संकलन सुभाष ललवानी द्वारा किया गया , सभा का संचालन केवल कटकानी ने किया ।
ख़बर पर आपकी राय
  • BREAKING NEWS
    Loading...