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उन्मार्ग को छोड़कर सन्मार्ग पर चलने से जीव को मोक्ष की प्राप्ति होती है!
श्याम त्रिवेदी की रिपोर्ट



श्याम त्रिवेदी की रिपोर्ट

उन्मार्ग को छोड़कर सन्मार्ग पर चलने से जीव को मोक्ष की प्राप्ति होती है - प्रवर्तक पूज्य जिनेन्द्रमुनिजी मसा.

झाबुआ । इन्द्रियों के विषयों की तल्लीनता, और उनमें आसक्ति से व्यक्ति अपने लक्ष्य को भुल जाता है । बाह्य पदार्थो  पर ध्यान ज्यादा रखता हे । जीव को विषयों में लीनता को अबोधि कहते है । विषय भोगों की ओर व्यक्ति जल्दी  आकर्षित होता है । भोग  की आसक्ति को छोडने से व्यक्ति बोधी को प्राप्त करता है ।

 बोधि के 3 प्रकार है, -ज्ञान, दर्शन, चारित्र बोधि । भगवान के वचनों को सही रूप में  समझकर सही ज्ञान प्राप्त करना ज्ञान बोधि होती है । सही समझ आती है तो वह विषयों को छोड़ता है । भगवान के वचनों पर विश्वास  दर्शन बोधि है, जीव का सम्यकत्व निर्मल बने , भगवान की वाणी सुन कर उस पर विश्वास करना चाहिये । 

जो करणीय कार्य करने योग्य है, उनको करना चारित्र बोधि है । साधु के 5 महाव्रत , श्रावकों के 12 व्रत समझकर, उनके दोषों को दूर करना चारित्र बोधि है । साधक की सही आराधना सही बोधि है, गलत आराधना अबोधि है । सही समझ आने पर व्यक्ति सम्यकत्वी बनता है । विषयों की विषमता घटे यह सच्ची बोधि है ।                            
उक्त प्रेरक विचार पूज्य जिनेन्द्र मुनि जी ने धर्मसभा में व्यक्त करते  हुए यह भी बताया कि मार्ग 2 प्रकार के होते है, उन्मार्ग और सन्मार्ग । विपरित साधना पद्धति उन्मार्ग है तथा भगवान द्वारा बताई कई सही साधना पद्धति सन्मार्ग है । उन्मार्ग  अपनाने सेआत्म-शुद्धि का लक्ष्य नही बनता है । 

संसार बढ़ाने की दृष्टि से किया गया संसार का जितना व्यवहार है, वह उन्मार्ग है । यह मार्ग  मोक्ष के योग्य नही, विपरित है । उन्मार्ग को छोडकर सन्मार्ग पर चलने से जीव को मोक्ष की प्राप्ति होती है । मुझे सभी कर्म  से, राग द्वेष   से छुटना है, यह आत्मा का लक्ष्य होना चाहिये । 

सन्मार्ग पर चलने से सभी विकार छूटते है । उन्मार्ग पर चलने पर ये नही छूटेंगे । अभी तक मोक्ष नही पाया, इसका कोई न कोई कारणअवश्य होता है । कर्म के उदय से जो स्थिति उत्पन्न होती है, वह उन्मार्ग है । गति,काया, कषाय, लेश्या,  में उदय भाव है, इसमें बहना  नही चाहिये।

मिथ्यात्व,  अ वृत्ति, प्रमाद, कषाय, अशुभ योग  ये 5 कर्म बंध के कारण है । व्रतों कोअंगीकार नही करना, व्रत को बंधन मानना, अव्रत  है । व्यक्ति को यह भावना मन में लाना चाहिए कि है प्रभू  हमारी मति, भावना बनी रहे, हम कभी भी उन्मार्ग के भागी न बने , हमेशा सन्मार्ग के राही ही  बने । जीवन में सरलता आए बिना सन्मार्ग पर चलना कठिन है ।जीव का मन वक्र है, वही गलत मार्ग को सही समझ लेता है ।


वक्रता सरलता को अपने पास आने नही देता है । जीव सन्मार्ग पर बडी मुश्किल से चल पाता हैे । चारित्र से पतित होने में देर नही लगती हे । सन्मार्ग पर चलने के लिये भगवान द्वारा बताइ गई आराधना को समझना आवश्यक है । श्रावक यदि व्रतों का पालन श्रद्धापूर्वक सही करे तो  जन्म-मरण से मुक्ति मिलती है । 

जीव को सरलता लाना पडेगी , जिनकी जितनी  आत्मा सरलता प्राप्त करेगी उतना सन्मार्ग सरल ओर निर्मल  हो जाता है। एक बार सम्यकत्व मिल जाए तो भव भ्रमण मिट जायेगा। 5वे आरे में मनुष्य अविश्वास के ज्वालामुखी पर बैठा हे, यह ज्वालामुखी कब फुट जाएगा पता नहीं ।

अणुवत्स पूज्य संयतमुनिजी मसा. ने कहा कि भगवान महावीर स्वामी ने भव्य जीवों को संसार का स्वरूप बताया, उन्होने संसार की समस्या, दोषों को एक एक कर बताया कि संसार का स्वरूप को जीव अच्छी तरह से समझे । जीव मोह कर्म उदय से संसार को अच्छा समझता है,संसार ऊपर से अच्छा लगता है, पर अन्दर से दल-दल से भरा हुआ है । संसार  जेसा है, वह  दिखाई नही देता है, जेसा दिखाई देता है, वैेसा नही है ।

संसारी जीव प्रायः  अविश्वास करते है, जिस पर वह विश्वास करता है, वह विश्वास तोडता है । पिता-पुत्र पर, पुत्र-पिता पर ,सासु-बहु पर, बहू-सास पर ,मालिक नौकर पर और नौकर मालिक पर अविश्वास करता है ।पति-पत्नीपर, पत्नी पति पर अविश्वास  करती है । आखिर में स्थिति तलाक तक पहूंच जाती है । 

इस 5 वें आरे में मनुष्य अविश्वास के ज्वालामुखी पर बैठा हुआ है, यह ज्वालामुखी  कब फुट जाये, इसका पता नही ।यह संसार एक धोखा है,अपने ही बदल जाते है, नजदीक के संबंध भी दूर हो जाते है।धन देखकर नियत बिगड जाती है । संसार में जीव विश्वास करके धोखा भी खाता है। राजनीति  में तो बाप का सगे बेटे पर, बेटे का बाप पर भी विश्वास नही होता है ।

जीव किस पर विश्वास करें? न जड़ पर न चेतन पर । दुकानदार भी मिलावटी वस्तु को अच्छी बताता है । भगवान ने संसार के स्वरूप को बताया है, जीव भगवान की वाणी पर विश्वास कर संसार के स्वरूप  को समझेगा तो उसका छोडने का मन होगा ।



अणु ,जिनेन्द्र की बगिया में तप की बहार है। तप जैन धर्म का श्रृंगार है ।
धर्मसभा में मासक्षमण तप की और अग्रसर श्रीमती राजकुमारी कटारिया, श्रीमती सोनल कटकानी ने 26 उपवास, श्रीमती रश्मि मेहता ने 24 उपवास, श्रीमती आरती कटारिया, श्रीमती रश्मि, निधि, निधिता रूनवाल, श्रीमती चीना,नेहा घोडावत,  ने 23 उपवास, के प्रत्याख्यान ग्रहण किये ।

 इनके अलवा अक्षय गांधी, ने 22 उपवास कुमारी खुशी चौधरी ने 16 उपवास, श्रीमती आजाद बेन श्रीमाल, श्रीमती सोना कटकानी ने 8 उपवास के प्रत्याख्यान लिये।संघ में 10 तपस्वी उपवास, एकासन ,निवि तप से वर्षी तप कर रहे है । श्रीमती पूर्णिमा सुराना सिद्धितप, श्रीमती उषा ,सविता, पद्मा, सुमन, रूनवाल द्वारा मेरूतप किया जा रहा है । 

चोला-चोला, तेला-तेला, बेला-बेला  भी श्रावक श्राविकाऐ कर रहे है। तेलाऔरआयंम्बिल तप की लडी चातुर्मास  प्रारंभ से सतत चल रही है ।  उक्त व्याख्यान का संकलन सुभाष ललवानी द्वारा किया गया संचालन श्री  केवल कटकानीने किया ।
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