लाखों की सरकारी खरीदी प्रक्रिया की जांच का मामला।
झाबुआ! शहर के मॉडल कॉलेज में लाखों की सरकारी सामग्री खरीदी प्रक्रिया की जांच होने के पूर्व ही काॅलेज के जवाबदारों ने एक और खेल कर दिया। कलेक्टर द्वारा गठित जांच दल के सदस्य मामले की जांच करते, उसके पहले ही बीड (टेंडर) निरस्त कर दिया। इतना ही नहीं जांच समिति के सदस्यों को इसकी सूचना भी नहीं दी गई!
शासकीय माॅडल काॅलेज में 84 लाख की सामग्री खरीदी के लिए गवर्नमेन्ट ई मार्केटप्लेस (जेम) पोर्टल पर बीड (टेंडर) जारी किए गए थे। टेंडर 2 दिसंबर 2022 को ओपन किए जाने थे।
टेंडर की प्रक्रिया की कमियों को लेकर झाबुआ24 ने 24 नवंबर 2022 को "महाविद्यालय में 84 लाख की सामग्री खरीदने से पूर्व ही भ्रष्टाचार की बांधी पाल" शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया था।
उक्त समाचार को आधार बनाकर की गई शिकायत के बाद कलेक्टर रजनी सिंह ने तीन सदस्यीय जांच दल गठित किया था!
लेकिन सदस्यों द्वारा जांच किए जाने से पूर्व ही काॅलेज के प्रभारी प्राचार्य एवं सहायक वर्ग-2 के कर्मचारी ने जेम पोर्टल पर टेंडर निरस्त कर दिया।
पीजी काॅलेज के प्रिंसिपल डॉ. जे.सी. सिन्हा जो कि माॅडल काॅलेज के आहरण वितरण अधिकारी भी है, ने इस मामले में जानकारी देते हुए बताया कि कलेक्टर मेडम ने जांच कमेटी बिठाई है। श्री जैन (माॅडल काॅलेज प्रभारी प्राचार्य) ने मौखिक रूप से मुझे बताया है कि बीड केंसल कर दी है। इस बारे मे मैंने उनसे लिखित में जवाब मांगा है।
एक सवाल के जवाब में श्री सिन्हा ने कहा, जब प्रकरण जांच में चल रहा था, तब तो बीड निरस्त कर ही नहीं सकते है। इन्हें कोई अधिकार ही नहीं है।
बीड निरस्त करना यही दर्शाता है कि इसमें बडा फाल्ट है, गंभीर समस्या है।
प्राचार्य और सहायक वर्ग-2 कर्मचारी दोनो ही संदिग्धता में है। श्री सिन्हा ने इसे गंभीर तरह का अपराध बताया है।
माॅडल काॅलेज के प्रभारी प्राचार्य सुरेशचंद्र जैन से इस पूरे मामलें में बात करने के लिए मोबाईल पर संपर्क किया गया, लेकिन उन्होंने काॅल रिसीव नहीं किया।
कलेक्टर रजनी सिंह द्वारा गठित जांच समिति के सदस्य डिप्टी कलेक्टर एल.एन. गर्ग ने कहा , टेंडर निरस्त किए जाने की जानकारी मुझे नहीं है। प्राचार्य से हमनें कहा है कि वे टेंडर प्रक्रिया से जुडे दस्तावेज हमें उपलब्ध करवाए।
उल्लेखनीय है कि जांच से पूर्व जवाबदारों द्वारा टेंडर निरस्त करना कई सवालों को खडा करता है। टेंडर प्रक्रिया का पालन नियमानुसार किया गया था तो इस प्रक्रिया से जुड़े अधिकारियों को जांच समिति के सामनें अपना पक्ष मजबूती के साथ रखना था। न कि टेंडर निरस्त करना था।
कलेक्टर ने 28 नवंबर को जांच दल बनाया था। दल के तीन सदस्यों को 15 दिन में जांच कर रिपोर्ट कलेक्टर को प्रस्तुत करना थी। लेकिन निर्धारित समय से अधिक होने के बाद भी मामला ठंडे बस्ते में है!
अधिकारियों द्वारा टेंडर निरस्त करना यही दर्शाता है कि प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं अपनाई गई थी। और जांच समिति से बचने के लिए 84 लाख की सरकारी सामग्री खरीदने के टेंडर निरस्त कर दिए गए!
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