तेज हवाओं के चलते नीम से गिर रही निम्बोली बन रही हाथ खर्च का जरिया!
1600 किमी दूर तमिलनाडु तक जा रही जिले से निम्बोली जहां इसकी मांग अधिक!
झाबुआ ! जिले के आदिवासी अंचलों से इन दिनों नीम के पेड पर लगने वाली निम्बोली की आवक अचानक बढ गई है। मंगलवार को पिटोल के हाट बाजार में कई टन निम्बोली पहुंची जिसे आदिवासी परिवार के बच्चों सहित महिलाऐं अपने सिर पर ढोकर बाजार में बेचने के लिये लाऐ थे।
बारिश की खेंच के कारण अंचल के वे लोग जो आर्थिक रुप से सक्षम नहीं है वे अपने समय का सदउपयोग कर प्रकृति से मिलने वाली आमदनी के दोहन में व्यस्त है। नतीजा जिले से भारी मात्रा में निंबोली का निर्यात अन्य राज्यों को हो रहा है। बताया जा रहा है कि यदि पानी की खेंच बनी रही तो आने वाले दो सप्ताह तक इसकी बाजार में आवक बनी रहेगी।
गौरतलब है कि अभी किसान अपने खेतों को बोवनी के लिये लगभग तैयार कर चुके है। वर्तमान में चल रही तेज हवाओं के कारण पेड से निम्बोली बहुतायत में गिर रही है जिसे संकलित कर आदिवासी परिवार के वे सदस्य जो मजदूरी पर बाहर नहीं गऐ है वे इन निंबोली को बीन कर इसे अपने लिये हाथ खर्च का जरिया बनाऐ हुवे है।
खास कर बच्चे इसे संकलित करने में दिन भर जुटे रहते है। सुबह से शाम तक अच्छी मात्रा में इसे एकत्रित कर लेते है। एक सप्ताह तक एकत्रित करने के बाद जिले के विभिन्न क्षैत्रों में लगने वाले हाट बाजारों में जाकर बेच दिया जाता है। अलग अलग जगहों से व्यापारी यहां आकर इसे खरीदकर तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात राज्यों में लेजाकर बेच देते हेै। इसका उपयोग अलग अलग प्रयोजन में होता है।
दक्षिण भारत में अधिक है इसकी मांग!
स्थानीय व्यापारी मांगीलाल खतेडिया ने बताया कि इसकी मांग साउथ में अधिक है। यहां से यह तमिलनाडु जाती है। वहां होने वाली लोंग ओर ईलायची की खेती में इसका उपयोग किया जाता है। इससे बनने वाली खाद अधिक उपजाउ ओर कारगर होती है। इसलिये इसे खाद के रुप में प्रयुक्त किया जाता है। ऐसे ही महाराष्ट्र के ओरंगाबाद में भी इसकी मांग अधिक है। युरिया खाद इससे कोटेड होता है। उत्तराखंड व गुजरात में भी इसकी इण्डस्ट्रीज है जहां कि इसकी दवाई, फर्टिलाईजर, पाउडर जिससे मच्छरों को मारने की दवाई तैयार की जाती है। निंबोली से खली, तेल ओर साबुन भी बनाया जाता है। रानापुर के व्यापारी शंकर राठोर जो फुटपाथ पर दुकान लगाकर इसकी खरीदी करते है उनकी माने तो नीम बहुउपयोगी प्राकृतिक संपदा में से एक है। जो कि एक आय के जरिये के साथ ही स्वस्थ पर्यावरण के लिये भी उपयोगी पेड है।
जिले के रानापुर, पारा, बरझर, थांदला, झाबुआ, गुजरात के दाहोद, गोधरा में भी इसके बडे खरीददार है जो यहां से निंबोली की खरीदी कर उन राज्यों को भेजते है जहां पर इसकी मांग अधिक है। उल्लेखनिय है कि मानसुन 25 जुन के बाद बताया जा रहा है ऐसे में अंचल के उन मेहनतकश लोगों को एक दो सप्ताह का ओर मौका मिलेगा जबकि वे इसे एकत्रित कर बाजार में बेचने को ला सकेगें ओर अपना हाथ खर्च निकाल सकेगें।
अशिक्षा के कारण नहीं मिलता है मूल्य व्यापारी लेते है लाभ!
कोयाधरिया की कबु बाई ने बताया कि वे ओर उनके बच्चे इतनी मेहनत कर के जंगलों से व दूर दूर खेंतो से इसे बीन बीन कर लाते है जिसमें उनको खासी मेहनत लगती है। बच्चे पूरे पूरे दिन लगे रहते है किंतु उन्हें उनकी मेहनत का सही मुल्य नहीं मिलता। छोटे व्यापारी उनसे इसे कम दाम पर खरीद लेते है। यहां तक कि तोल में भी वे हेरफेर करते है। ओर कीमत में भी गुमराह कर उनकी अशिक्षा का लाभ लेकर उनके साथ छलावा करने से नहीं चुकते।
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