सेल्फी लेते ही पंख फैला कर मनमोहक छटा बिखेरने लगा मोर!
पिटोल ! छोटी पिटोल के एक किसान परिवार की देखरेख में अण्डे से लेकर अपने योवन तक पले बडे इस राष्ट्रीय पक्षी के साथ ही वहां रहने वाले अन्य पक्षियों से परिवार को ईतना मोह है कि वह सरकारी राशन दुकान से अपने परिवार के हिस्से का मिलने वाला राशन भी इन मोरों ओर पक्षियों को खिला देते है।
मकना भाई के इस पक्षी प्रेम को अपनी नजरों से देखने के लिये यह प्रतिनिधी जब उनके घर पहुंचा तो मकना भाई मोर को अपने हाथों से निवाला दे रहे थे। इस प्रतिनिधी ने जब उस पल को अपने केमरे में केद किया ही था ओर उसे अपने ईतने करीब पाकर उसके साथ सेल्फी लेना चाही तो यह एक महज संयोग ही था कि सेल्फी लेते ही मोर अपने मनमोहक पंखो को फैला कर नाचने लगा तो ऐसा लगा मानो सेल्फी के लिये उसने भी अपनी मनमोहक छटा बिखेर दी हो।
किसान मकना भाई ने बताया कि वे पांचकानाका के फारेस्ट से लगी पहाडी की तलहटी के पास रहते है जहां मोर आते जाते रहते है। मवेशी चराते वक्त उन्हें खेत में मोर के अण्डे मिले जिसे उन्होने अपने घर की मुर्गी से सेहा। जब अण्डे से चुजा निकला तब उन्होने व परिवार के लोगों ने उसकी देखरेख कर बडा किया। बडा होकर वह अब उनके आसपास ही रहता है। जिसका वे दाना पानी देकर पुरा खयाल रखते है। उसके साथ जंगल के अन्य मोर भी आ जाते है जिन्हें वे दाना पानी देते है। मकना भाई के आवाज लगाते ही मोर व उनकी पाली हुई मुर्गियां जहां भी हो दौडी चली आती है।
मुर्गे मुर्गियां पालने का शौक पर नहीं करते उनका व्यापार!
मकना भाई के पुत्र सागर ने बताया कि पिताजी परिवार की माली हालत खराब होने के बावजुद भी मुर्गे मुर्गियां नहीं बेचते न कभी उनका मांसाहार के रुप में उपयोग करते है। न परिवार को करने देते। बकरे बकरीयां गाय बेल भी उनके यहां अधिक संख्या में रहे किंतु उन्हें कभी बेचा नहीं। मेहनत मजदूरी के साथ ही खेती बाडी से जो अर्जित होता है उससे परिवार चलता है। किसी से उपकृत होकर जीवन नही बिताने के स्वाभिमान के चलते उन्होने कालाखुंट पंचायत से मिले प्रधानमंत्री आवास का भी लाभ नहीं लिया। वर्तमान में वे व उनका परिवार खपरेल वाले मकान में निवास कर अपना जीवन यापन कर रहा है।
मोरो की रक्षा करने के लिये अब आगे आ गया आदिवासी किसान
झाबुआ ब्लाक में मोरों की संख्या न के बराबर थी। यदि कहीं दिख भी जाता था तो या तो बच्चे पत्थरों से नुकसान पहुंचाते थे या आवारा कुत्ते उन्हें नहीं छोडते थे। किंतु अब इनकी सुरक्षा को लेकर अब आम आदिवासी परिवार जाग्रत होकर आगे आया है। नतीजा यह हुआ कि क्षैत्र के पिटोल से लगे खेडी, मोद, कुण्डला, पांचकानाका, मण्डली, घाटीया, भीमफलिया व अन्य अंचलों में इनकी संख्या अनगिनत होती जा रही है। इन मोरों के लिये ग्रामीण अपने अपने स्तर पर दाना पानी का प्रबंध करते है। गोरतलब है कि कुछ वर्षो पुर्व बावडी बडी के एक आदिवासी ने शराब के नशे में मोर को पत्थर मार कर घायल किया जिसे गांव के एक व्यक्ति ने देख लिया। वह व्यक्ति घायल मोर को उठाकर उपचार के लिये अस्पताल ही नहीं लाया अपितु उस व्यक्ति की पुलिस रिपोर्ट करने चैकी भी पहुंच गया था।
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