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औषधीय गुणों से भरा, मंहगा बिकने वाला ककोरा इन दिनों ज्यादा कहीं नजर नहीं आ रहा।
पिटोल से निर्भयसिंह ठाकुर की रिपोर्ट

श्याम त्रिवेदी
Last Updated 2023-08-05T13:27:26Z


पिटोल से निर्भयसिंह ठाकुर की रिपोर्ट

औषधीय गुणों से भरा, मंहगा बिकने वाला ककोरा इन दिनों ज्यादा कहीं नजर नहीं आ रहा।

जंगली सेही व चुहों ने जडों को कुरेदकर पहुंचाया नुकसान।

पिटोल । झाबुआ जिले के हाट बाजारों में आम तौर पर फुटपाथ पर बैठकर मंहगा बिकने वाला ककोरा  (किकोडा) इस साल बहुतायत में कहीं नजर नहीं आ रहा है। 

कभी पल्ली लगाकर जिले के आदिवासी किसानों ओर ग्वालों से कम दाम में खरीदकर अधिकदाम में गुजरात के व्यवसायियों को बेचने वाले खुदरा व्यापारियों के यहां मानों इस ओषधीय शाकाहारी सब्जी का ग्रहण सा लग गया है। 

वर्तमान में गुजरात की दाहोद मंडी या आलीराजपुर क्षैत्र से लाकर व्यापारी इसे 200 से लगाकर 250 रुपऐ प्रतिकिलो के दाम पर बेच रहे है। फिर भी इसके गुणों के जानकार या शौकीन इस दाम पर भी चाव से इसका सेवन करने से नहीं चूक रहे। 

वर्ष भर में एक बार इसके सीजन में आने वाला यह ककोरा जिसे किकोडा या खेखसा भी कहा जाता है। जिले में खास कर जंगलों में मवेशी चराने जाने वाले ग्वालों की आमदनी का जरीया भी होता है। हालांकी अब कई प्रदेशों में इसकी खेती भी होने लगी है। किंतु बावजुद इसके यह आसानी से नहीं मिल पा रहा है। 

सेही व चुहे पहुंचा रहे नुकसान।
जंगलों में खेती कर रहे तानसिंग भाई गुंडिया ने बताया की सेही जिसे कि आदिवासी अपनी भाषा में हेंहटी कहता है वह ओर जंगली चुहे इस किकोडे की जडों को कुरेदकर खा जाते है। इस कारण अबकी बार इनकी बेले जंगलों से भी नदारद है। 

बताया जाता है कि यह एक बार लगने के बाद खेतों में या जंगलों में खुद से ही उगने लगती है। बार बार इसकी बुआई की जरुरत नहीं पडती। बारिश होते ही इसकी बेलें अपने आप जंगलों व खेतों के किनारे निकल कर नजर आने लगती है। 

इसी कारण कृषि विभाग भी इसके बीज नहीं रखता है। केवल जंगलों में ही यह ज्यादा मिलती है। जंगल में इसकी पेदावार होती है जिसे किसान व ग्वाले बाजार में लाकर ज्यादा बेचते है। 

इसकी सीजन खत्म होते ही पके ककोडे के बीज गिर जाते है। ओर जैसे ही पहली बारिश होती है, इसकी बेले जंगलों में नजर आने लगती है। 
मीट से कई गुना ज्यादा ताकत ओर प्रोटीन है इसमें।        
डाक्टर अंतिम बडौले की माने तो हर सब्जी में कीटनाशक दवाईयों का उपयोग होता है। लेकिन ककोडा पूरी तरह जैविक होता है। इसमें प्रचुर मात्रा में प्रोटीन व आयरन होता है, इसलिये यह सेहत के लिये मीट से कई गुना ज्यादा ताकतवर ओर प्रोटीन युक्त है। ककोडा में मौजुद फाईटोकेमिकल्स स्वास्थ को मजबूत रखने के लिये मददगार होता है। एंटीआक्सिीडेंट से भरपूर होने के कारण यह शरीर को साफ रखने में भी सहायक है। 

औषधीय गुणों के कारण भी है इसकी मांग।
औषधीय दवाईयों के जानकार डाॅ. जगदीश खतेडीया के अनुसार मानसुन में मिलने वाली यह सब्जी ककोडा (खेखसा) के गुणों के बारे में कम लोग जानते है। यह दुनिया की सबसे शक्तिशाली सब्जीयों में से एक है। इसमें अद्भूत औषधीय गुण पाऐ जाते है। 

आयुर्वेद में इससे बनी औषधी श्वांस संबंधी रोग, मुत्र विकार, बुखार, सुजन आदि में बहुत उपयोगी है। आम तौर पर यह बारिश में पहाडी जमीनों में ज्यादा पैदा होती है। 

गुजरात से म.प्र. के पिटोल में लाकर सब्जी बेच रहे गोलु भाई का कहना है कि मंडी में किकोडा महाराष्ट्र व गुजरात से यहां आ रहा है। राजस्थान के कुछ जिलों में भी यह होता है। जिले के वे किसान जो कभी उन्हें बेचने आते थे वे अब खुद उनसे खरीदकर ले जा रहे है। 
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